Wednesday 14 August 2013

स्वतंत्र देश के बंधक नागरिक


आज स्वतंत्रता दिवस के दिन जब थोडा समय मिला तो मैंने अपनी और आस-पास के लोगों की ज़िन्दगी पर थोडा ध्यान दिया और शायद यहीं गलती हो गयी. अब तक स्वतंत्र होने का जो भ्रम था वो टूट गया. एक समय हुआ करता था जब इंसान खुद के साथ-साथ आने वाली पुश्तों के लिए भी कम लिया करता था और उसके साथ ही सभी दूर-दराज़ के रिश्तों को भी ज़िन्दगी भर साथ लेकर चलता था. पड़ोसियों और अनजाने लोगों से भी एक आत्मीयता का रिश्ता जोड़ लेता था. सुख-दुःख में मदद करने को हर दम तैयार...
...और आज समय है जब पड़ोस के घर में कौन रहता है यह तक नहीं पता होता. खुद का गुज़ारा करना तो मुश्किल है पुश्तों की सोचना तो पूरी तरह व्यर्थ है. रोज़ की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में जीवनसाथी को समय दे दें वही बहुत बड़ी बात है रिश्तेदारों या दोस्तों को मिलना तो अत्यंत मुश्किल है. ऐसी ज़िन्दगी को मैं तो बंधक की ज़िन्दगी ही कहूँगी जहाँ दिन-रात कमाने और अपने स्थान को बरक़रार रखने की जद्दोजहद चलती है. न दोस्तों से रूबरू होने की फुर्सत है न घर वालों के साथ बैठने का समय. न शौक पूरे करने की हिम्मत है न नई चीज़ों को सीखने का वक़्त. न पर्याप्त पैसा मिल पाता है और नाही निःस्वार्थ प्यार...
गौर से देखें तो यही पाएंगे कि इन सभी चीज़ों के पीछे उस ही सरकार का हाथ है जिसे चुनकर हमने अपने और अपनी आने वाली पुश्तों के लिए स्वतंत्रता और विकास सुनिश्चित करने की सोची थी. आज सरकार शासन और प्रशासन दोनों में ही पूरी तरह से नाकाम है. भ्रष्टाचार और दादागिरी ने ‘Government’ और ‘Administration’ दोनों को ही खोखला कर दिया है. महंगाई आसमान छू रही है...रूपये का अवमूल्यन हो रहा है...और पूरी सैलरी Taxes और EMI भरने में चली जाती है...
क्या आपको नहीं लगता कि अगर हम आयकर भरते हैं तो हमें हर उत्पाद या सेवा का भोग करते समय टैक्स नहीं लगना चाहिए...? यह तो बड़ी अजीब सी प्रथा है इस देश की कि हमें कमाते वक़्त भी सरकार को पैसे देने पड़ते हैं और खर्च करते वक़्त भी. इस तरह हम सिर्फ सरकार के हम्माल बन कर रह गए हैं जो उनके लिए दिन-रात कमाते हैं और टैक्स चुकाते हैं. हमारे लिए तो हम सिर्फ इतना कमा पाते हैं कि अपनी जीविका चला सकें...और सरकार को प्रति वर्ष अपनी कमाई में से न्यूनतम 50% देने के बाद भी हम किसी तरह के विकास या सुविधा की उम्मीद भी नहीं कर सकते. यह पैसा सिर्फ राजनीतिज्ञों और उनके भाई-बंधुओं की जेबों में जाता है और आज इसही लिए कोई भी छोटे से छोटा नेता भी 1000 करोड़ का असामी अवश्य होता है.

तो अब जब आज हमें राष्ट्रीय अवकाश मिला है, थोडा समय इस बात पर अवश्य चिंतन करें की हमें कैसी सरकार और कैसा शासन चाहिए और कोशिश कर अपनी आने वाली पीढ़ी को उस तरह के संस्कार देने का प्रयास करें ताकि हमारे देश को सिर्फ अच्छे डॉक्टर-इंजिनियर ही नहीं बल्कि अच्छे राजनेता भी मिलें!
#HappyIndependenceDay

Friday 9 August 2013

आत्मा की शुद्धि के लिए तपस्या ज़रूरी


भारत कई धर्मों का देश है परन्तु धर्म जो भी हो, उसके पीछे की भावना एक ही होती है – ‘आत्मा की शुद्धि’. प्राचीन काल से यह आस्था रही है कि त्याग, समर्पण और तपस्या के माध्यम से इंसान ईश्वर के करीब पहुँचता है और उसके जीवन के दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं. इस मान्यता को आप हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हर धर्म में समान रूप से देख सकते हैं.
हिंदुओं में उपवास करना तो मुस्लिमों में रोज़े, इसही तरह आस्था और विश्वास की झलक हर त्यौहार में दिखाई देती है. रमज़ान के इस एक महीने के कड़े तप के दौरान मुस्लिम न सिर्फ अल्लाह की इबादत में डूबे होते हैं बल्कि उनकी शरण में जाने के लिए नियमित रूप से नमाज़ पढ़ते हैं और रोज़ा करते हैं. श्रद्धा के इस रूप को देखकर मन को अलौकिक सुकून की प्राप्ति होती है. ईद इसही तपस्या के पूरे होने पर उत्सव के रूप में मनाई जाती है.

मैं सभी रोजदारों को उनकी तपस्या और आत्मअन्वेषण के सफर के सफलतापूर्वक संपन्न होने पर बधाई देना चाहती हूँ और सभी देशवासियों को मेरी ओर से ईद मुबारक!